वक़्त

वक़्त का ही तो सितम रहा होगा,
तू खुद से यूँ खफ़ा क्यों है?

उठ देख ये वक़्त का क़हर,

जो कल दूसरों को बांटते थे
हर मर्ज की दवा,
आज वो मजबूर है पीने को ज़हर

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